Showing posts with label The Great Emperor Ashoka. Show all posts
Showing posts with label The Great Emperor Ashoka. Show all posts

Thursday, May 23, 2019

The Great Emperor Ashoka

                                                 

                               सम्राट अशोक महान् 


                 बहुधा बहुत से लोग यह समझते हैं कि प्राचीन हिंदुओ में केवल अमुर्त कल्पना की  ही प्रतिभा थी । जिसका  प्रमाण यह हैं कि उन्होने दर्शन व धर्म के अनेकानेक सिद्धांतो का सर्जन किया । इनके साथ व्यावहारिक  निपुणता  व सामर्थ्य में उनकी हिनता सर्व विदित हैं फलत प्राचीन भारत में भौतिक व वैज्ञानिक अध्यवसायो की आलोचना करके जीवन के आध्यामिक  व्यवसायो को  असंगत रूप से नवजीवन दिया ।
             अशोक का राज्य और वास्तव में , भारत का समस्त इतिहास इस मान्यता का खण्डन करता हैं । अशोक के शासनकाल में भारत इस भौतिक प्रगति और एक अर्थ में नेतृत्व प्रगति के भी एक बहुत ऊंचे स्तर पर पहुंच चुका था । उसने आदर्शों के क्षेत्र की भांति ही व्यवहारिक कार्यों के क्षेत्र में भी अपनी महानता प्रदर्शित की थी । उसने अहिंसा , विश्वशांति , मनुष्य और प्रत्येक चेतन प्राणी के बीच परस्पर शांति के सिद्धांत पर अपना साम्राज्य आधारित किया था । फलत: वह सदाचार का साम्राज्य था सत्य पर न की बल पर आधारित साम्राज्य था । और इसी कारण वह अपने युग में से इतना आगे था । कि पशु से मानव तक के कष्ट कर जीवन की नियति तथा सामान्य ऐतिहासिक प्रक्रिया का भार सहन नहीं कर सकता था ।
                     वह  नैतिकता ,आचरण और धर्म का  प्रथम गुरु था । विभिन्न प्रांतों में पाई जाने वाली शिलाओ और घोषणा स्तंभ पर आज भी नीति और नैतिकता के यह सिद्धांत अमिट शब्दों में अंकित पाए जाते हैं । यह शिलालेख एक प्रकार से सम्राट अशोक की आत्मकथा है । उसके स्मरणीय इतिहास के अति महत्वपूर्ण एवं फलदायक प्रभाव है । क्योंकि सबसे अधिक चिरकालीन सामग्री को पत्थर पर अंकित किया गया था । ताकि उन्हे चिरकाल तक कायम रखा जा सके ।
                         सम्राट अशोक अन्य देशों की जनता में लोकहित के कार्य करते थे , जैसे कि मनुष्य व पशुओं के लिए औषधि और चिकित्सा आदि का प्रबंध जिसका उल्लेख शिलालेख 2 में किया गया है ।, जिसके लिए भारतीय सम्राट बड़ी उदारता के साथ मुक्तहस्त होकर धन देता था । सम्राट अशोक ने धर्म और नैतिकता के क्षेत्र के अतिरिक्त राजनीतिक क्षेत्र में भी कुछ बड़े ऊंचे आदर्श पेश किए थे । एक युद्ध की भयंकरता ने ही उसके मन में यह दृढ़ विश्वास जगा  दिया था । कि  युद्ध का सामाजिक व्यापार में कोई स्थान नहीं होना चाहिए । उसने कहा कि बल की विजय से बढ़कर सत्य की विजय है। [शिलालेख - 13 ] उसकी निष्ठा केवल बोद्ध धर्म में ही नहीं थी ,अपितु ब्राह्मण धर्म एवं अन्य संप्रदायों में भी वह गहरी निष्ठा रखता था । उसने न केवल बोद्ध विहारो का निर्माण करवाया । बल्कि ब्राह्मण सन्यासियों एवं अन्य संतो के लिए भी अनेक विहारो का निर्माण करवाया ।
ताकि भारत में सदचार , नैतिकता , मानवीयता एवं दीन -दुखियों के प्रति रक्षा एवं भारतीय सामाजिक ताना-बाना सतत चलता रहे ।
           वह महात्मा बुद्ध को अपना प्रेरक मानता था । लेकिन वह अन्य  संप्रदायों   में भी रुचि रखता था । वह भारत का प्रथम सम्राट था। जिसने युद्ध की बजाए प्रेम , मानवता , दीन -दुखियों की सेवा , प्रकृति की सेवा ,  सभी प्रकार के प्राणियों की सेवा संकल्प का पत्थर की शीलाओ ,  मूर्तियों,  स्तंभो पर अंकित करवाया । ताकि उसकी यह देन संपूर्ण विश्व सदियों -सदियों तक  स्मरण कर सके । 
           आज के परिदृश्य में भारत में महान सम्राट अशोक के संदर्भ में अपेक्षाकृत बहुत ही कम दर्शाया जा रहा है । लेकिन महान सम्राट अशोक के शिलालेख हमें सदैव उसके एवं महात्मा बुद्ध के आदर्शों को प्रदान करते रहेंगे ।
                          नमो: बुद्धाय 
                          जय सम्राट अशोक
                          जय भीम
                          जय सविंधान
                       

ईश्वर GOD

                                                                      ज्ञेय   { जानने योग्य }                          '...

Popular Posts