सुख रो साथी दु:ख
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पंछी चाहे इस सागर मे
कितना ज़ोर लगा ले रे ,
दुख भरे इस सागर में
तू सुख रा पंख लगावे है |
पंख जीर्ण है दरिया लांबा ,
फिर भी आस लगावे है |
भाव सागर की इस आशा में
कर्म भेद नहीं पावे है |
जैसों वो करमा रो लोभी ,
वैसों सुख दुख पावे है |
साचो पंछी दुख मे जीवे
पण सब सुख आस लगावे है |
'पंछी '